गणेश चतुर्थी
नमस्कार मीत्रो
मित्रों अपन भारतीय सँस्कार केंद्र में जीने की कला के अंतर्गत अध्यात्म शक्ति अनुसन्धान केंद्र से आज यह लेख, गणेश चतुर्थी के उपलक्ष्य में दे रहे है।
हिन्दी माह के अनुसार 31,08,22 बुधवार को गणेश चतुर्थी तिथि है। शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश जी की उत्पत्ति, उनका जन्म माता पार्वती के मैल, उबटन से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ है।
विशेषता-शास्त्रों मे जो वर्णन है उसके आधार पर श्री गणेश जी, प्रमुख पंचपरमेश्वरो मे से एक हैं। तथा ब्रह्मांड के समस्त प्राणियों के कर्मों का लेखा जोखा रखते हुए, उन्हें कर्मानुसार फल भी प्रदान करते हैं। सर्वप्रथम पूजनीय होने के साथ साथ समस्त देवी देवताओं का वरदान भी प्राप्त है उन्हें। भगवान शिव व माता पार्वती के पुत्र माने जाते हैं। गणेश जी अपने आप मे पूर्ण परब्रह्म है। ऋद्धि सिद्धि देने वाले हैं। यह दोनो नाम इनकी पत्नियो के हैं। तथा शुभ और लाभ इनके दो पुत्र माने जाते हैं।
ज्ञान और बुद्धि के देवता, समस्त गणों के अधिपति भगवान गणपति जी समस्त प्रकार के दुःख, संकट, बाधा, शत्रु, अवरोध व विघ्नों को हरने वाले, कल्याणकारी, शीघ्र प्रसन्न होने वाले तथा व्यक्ति की प्रत्येक मनोकामना पूर्ण करने वाले देव है।
इनकी पूजा पाठ मे अधिक मेहनत, कष्ट या परेशानी नहीं होती। थोड़ी सी पूजा से जल्दी ही प्रसन्न होने वाले मोदकप्रिय गणेश जी की कई प्रकार की पूजा पद्धतियां है। साधनाएं है, उपासनाएं है। उनकी विविध कलाए है। विभिन्न प्रकार के मंत्र, स्तोत्र है। इनकी सात्विक, राजसिक व तामसिक तीनो प्रकार की साधनाएं प्रचलित है साधकों मे। लेकिन हम यहां सामान्यजन ग्रहस्थो के लिए ही पूजा, साधना देंगे। गणेश चतुर्थी के पावन महापर्व पर गणेश जी की पूजा, उपासना, साधना सर्वजन के लिए श्रेयकर रहेगी। क्योंकि वही हमारी तमाम आपदाओं विपदाओ से रक्षा करेंगे तथा हमारे लिए ऋद्धि सिद्धि, शुभ लाभ व उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करेंगे।
कोशिश करे की आज ही के दिन मूर्ति, तस्वीर या यंत्र या कोई प्रतीक चिन्ह बाजार से नया लेकर आए। नया सूती कपड़ा हरा, पीला, केसरिया, लाल इनमे से कोई भी रंग का लेकर, एक लकड़ी के पाट या चौकी पर बिछा कर, उस पर प्रतीक चिन्ह स्थापित कर दे। जिन्हें विसर्जन करना है उन्हें मिट्टी की मूर्ति लानी चाहिए। स्थापना के बाद
षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। वह इस प्रकार हैं। सर्वप्रथम गणेश जी का ध्यान करे, हाथ में पुष्प, चावल लेकर गणेश जी का ध्यानमंत्र या श्लोक पढ़ना चाहिए। अगर मंत्र या श्लोक नही आता तो अपनी स्पष्ट भाषा में मानसिक रूप से उन्हें मेहसूस करे। भक्ति भाव से उन्हें पधारने के लिए पुकारे और एक चावल का दाना उनकी मूर्ति, तस्वीर या यंत्र या कोई भी प्रतीक चिन्ह हो, उस पर डाल दें। चावल को हल्दी या कुमकुम से रंगना ज्यादा ठीक रहेगा। ध्यान मंत्र गजाननम भूत गणादि सेवितम कपित्थ जंबू फल चारु भक्षणम। उमा सुतम शोक विनाश कारकम नमामि विघ्नेस्वर पाद पंकजम।। ध्यानम समर्पयामि ॐ गं गणपतये नमः।
आव्हान फिर चावल का एक दाना हाथ में लेकर अपनी स्पष्ट भाषा में उनका आह्वान करे यानी उनसे आने की विनती करे। और चावल का दाना फिर प्रतीक चिन्ह पर डाल दें। इसी तरह हरबार चावल का दाना उनपर डालते रहे। आह्वान मंत्र आगच्छ भगवन देव स्थाने यत्र स्थिरो भव। यावत्पुजाम करिश्यामी तावत्त्वम सन्निधो भव।। आव्हान समर्पयामि ॐ गं गणपतये नमः।
आसन, हाथ में पीला पुष्प लेकर उनके चरणों में चढ़ाए। यानी की फूल मे बैठने की प्रार्थना करे अपनी ही भाषा में। अपने बिल्कुल सात्विक भाव से। मंत्र रम्यम सुशोभनम दिव्यम सर्व सौख्य करम शुभम।
आसनम च मया दत्तम ग्रहाण परमेश्वर।। आसन समर्पयामि ॐ गं गणपतये नमः। आप इस तरह बोल सकते हो। और भी आगे बतलायेंगे।
पाधम, आचमनी या पुष्प या आम, पीपल या पान के पत्ते से जल लेकर उनके पैर धुलाए।
पाधह मन्त्र
उष्णोदकम निर्मलम च सर्व सौगंध संयुक्तम।
पाद प्रक्षालनार्थाय दत्तम ते प्रति गृह्यताम।। ॐ गं गणपतये नमः पाद्धम समर्पयामि।
अर्घ्य, फिर वैसे ही हाथ धुलाए। और अगर आपको मन्त्र या श्लोक बोलने में दिक्कत आ रही हैं या आप नये है नही जानते या समय का अभाव है तो आप संक्षेप में भी पूजा कर सकते हो, बोल सकते हो। इसका भी पूर्ण फल, परिणाम मिलता है जैसे अर्घ्यम समर्पयामि ॐ गं गणपतये नमः। इसी प्रकार सब जो जो भी चढ़ाय उसे इसी प्रकार चढ़ाय जैसे, स्नान, तो बोले वैसे ही स्नानम समर्पयामी ॐ गं गणपतये नमः अगर पंचामृत स्नान करवाना है तो पहले दुग्ध फिर दही फिर घी फिर शहद और फिर शक्कर और फिर सामान्य जल में गंगाजल डालकर स्नान करवाए। हर वस्तु से स्नान के बाद जल से स्नान कराएं। बाद में पंचामृत, शुद्ध जल से स्नान के बाद वस्त्र पहनाएं। वस्त्र पहनाये तो बोले वस्त्रम समर्पयामि ॐ गं गणपतये नमः। इस तरह जो भी चढ़ाय उसका नाम लेकर बोले अमुक समर्पयामि ॐ गं गणपतये नमः। इसी प्रकार सब वस्तुएं चढ़ाते हुए पूजा करते रहे, बोलते रहे। जनेऊ यानी कि यज्ञोपवीत भी अवश्य पहनाएं, चढ़ाय। फिर आभूषण पहनाएं या समर्पित करे। फिर सुगंधित तेल या इत्र लगाएं। चंदन, रोली या सिंदूर का टीका लगाये। लगे हुए टीके में अक्षत यानी कि चावल लगाएं। कुछ चावल उनके माथे पर, ऊपर भी छिड़क दें। तथा सिंदूर अवश्य ही लगाएं या चढ़ाये। पुष्प चढ़ाएं व पीले फुल का एक पत्ता माथे पर, जहां टीका लगा है वहां पर लगाए। तथा पीले रंग की एक फूलमाला भी गणेश जी को पहनाएं। इसके बाद दूर्वा का अग्र भाग भी चढ़ाए। धूप जला कर उन्हें सुंघाकर एक तरफ लगा दे। प्रज्वलित दीपक को दिखाए। दीपक मे शुद्ध देशी घी या शुद्ध मीठा तेल भी हो सकता है। नैवेद्य में मिठाई, लड्डू चढ़ाए बेसन या नुक्ति के। इसके बाद पीने के लिए जल यानी कि आचमन के लिए जल चढ़ाएं। फल जितने भी प्रकार के चढ़ाना चाहे, चढ़ाए। इसी के साथ नारियल भी चढ़ाए। कोशिश करे की पीला फल भी अवश्य चढ़ाएं। गणेश जी को पिला रंग पसंद है अतः कोशिश करें कि भगवान को पिले रंग की चीजें ही ज्यादा चढ़ाय। तथा खुद भी पिले वस्त्र धारण करके पूजन करें। फिर आचमन के लिए जल समर्पित करे। फिर ताम्बुल यानी कि पान का बीड़ा, जिसमे सुपारी, लौंग, इलायची हो, चढ़ाए। दक्षिणा मे जो भी आप चढ़ाना चाहे चढ़ाए या कुछ रुपए पैसे रख दे। प्रदक्षिणा जगह होने पर गणेश जी की परिक्रमा करे। अगर जगह नही है तो अपने स्थान पर बैठे बैठे ही मानसिक परिक्रमा करे।
अगर कोई व्यक्ति, साधक, गृहस्थ साधना उपासना करना चाहे तो इतने पूजन के बाद ॐ श्री ह्रीं क्लीं ग्लौ गं गणपतये वर वरदये नमः। या ॐ ग गनपतये नमः मंत्र की एक माला जप करले। माला लाल चंदन, मूंगा या रूद्राक्ष की, 108 दाने की होनी चाहिए। तथा माला को किसी कपड़े से ढक लेना चाहिए। पूजन, माला के बाद क्षमा याचना प्रार्थना स्तोत्र पढ़े। वह आप कही से भी ले सकते हो। अगर ना मिले तो निम्न स्तोत्र पढ़े
लंबोदर! नमस्तुभम सततम मोदक प्रिय।
निर्विघनम कुरु मे देव सर्व कार्येशु सर्वदा।।
त्वाम विघ्न शत्रु दलनेति च सुन्दरेती।
भक्ति प्रदेति सुख देती फल प्रदेति।।
विद्या प्रदेत्य धहरेती च ये स्तुवन्ति।
तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव।।
फिर प्रणाम करते हुए निम्न श्लोक पढे
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष! रक्ष त्रैलोक्य रक्षक।
भक्तानाम भयं करता त्राता भव भवार्णवात।।
इस तरह अपनी भाषा में, शुद्ध सात्विक रूप से प्रार्थना करें अपनों के लिए, अपने लिए। फिर आरती करें। उसके बाद मन्त्र पुष्पाजंलि दें।
मंत्रपुष्पांजलिं, खड़े होकर हाथों में समस्त प्रकार के पुष्प लेकर इस प्रकार उछाले की वह गणेश जी के सिर पर गिरकर चारों तरफ बिखर जाये। हाथ जोड़े ढोक दे दंडवत प्रणाम करे। बस आपका षोडशोपचार पूजन व जप सम्पन्न हुआ आप फ्री।
अंत में समस्त पूजा पाठ जप तप भगवान गणपति जी को समर्पित करें। व जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे। इस प्रकार इस चतुर्थी के अलावा प्रत्येक माह की चतुर्थी को भी आप पूजन कर सकते हैं। अगर एक ही दिन की पूजा करनी है तो इसी प्रकार करलें और अगर ज्यादा या पूरे ग्यारह दिनों तक करनी हो तो एक निश्चित नियम बना कर ग्यारह दिनों तक कर लें। फिर आखिरी दिन मूर्ति विसर्जन करें। बहते हुए नदी के जल में मूर्ति विसर्जन करना चाहिए। आप इस तरह हर साल कर सकते हो व भगवान गणपति जी का आशीर्वाद पा सकते हो।
मित्रों पसंद आये तो लाइक, शेयर करना। पसंद ना आये तो कमेंट्स करके बताये। मित्रों अपन पर्याप्त मात्रा में अध्यात्म शक्ति अनुसन्धान केंद्र से लेख दे चुके। अब इसके बाद अपन आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र से लेख देंगे जिसमें आयुर्वेदिक योगों का वर्णन होगा। नये मित्र anadikal.blogspot.com का अवलोकन करें। अगर आप को आयुर्वेद या अध्यात्म से किसी पर कोई आर्टिकल, लेख चाहिए तो कृपया कमेंट्स करके बताये।
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