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गणेश चतुर्थी

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                   नमस्कार मीत्रो मित्रों अपन भारतीय सँस्कार केंद्र में जीने की कला के अंतर्गत अध्यात्म शक्ति अनुसन्धान केंद्र से आज यह लेख, गणेश चतुर्थी के उपलक्ष्य में दे रहे है। हिन्दी माह के अनुसार 31,08,22 बुधवार को गणेश चतुर्थी तिथि है। शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश जी की उत्पत्ति, उनका जन्म माता पार्वती के मैल, उबटन से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ है।  विशेषता-शास्त्रों मे जो वर्णन है उसके आधार पर श्री गणेश जी, प्रमुख पंचपरमेश्वरो मे से एक हैं। तथा ब्रह्मांड के समस्त प्राणियों के कर्मों का लेखा जोखा रखते हुए, उन्हें कर्मानुसार फल भी प्रदान करते हैं। सर्वप्रथम पूजनीय होने के साथ साथ समस्त देवी देवताओं का वरदान भी प्राप्त है उन्हें। भगवान शिव व माता पार्वती के पुत्र माने जाते हैं। गणेश जी अपने आप मे पूर्ण परब्रह्म है। ऋद्धि सिद्धि देने वाले हैं। यह दोनो नाम इनकी पत्नियो के हैं। तथा शुभ और लाभ इनके दो पुत्र माने जाते हैं।  ज्ञान और बुद्धि के देवता, समस्त गणों के अधिपति भगवान गणपति जी समस्त प्रकार के दुःख, संकट, बाधा, शत्रु,...

जीने की कला

नमस्कार मित्रों काफी समय बाद लिख रहा हूँ। अभी भारत सहित सभी देशों में कोरोना की वजह से महामारी फैल रही हैं। अतः कुछ दिनों के लिए सतर्कता जरूरी हैं। आप के लिए कुछ आयुर्वेदिक उपाय है जो आपको शरीर में ताज़गी और चुस्ती स्फूर्ति देंगे तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ायेंगे वह इस प्रकार है। तुलसी पत्र 5, दाल चिनी आधा चम्मच, काली मिर्च 4, सूखी अदरक आधा चम्मच, मुनक्का 3, स्वाद के अनुसार गुड़, या नीबू रस,  इन सब को एक गिलास पानी मे उबालें तथा आधा रहने पर, छान कर पी जाये सुबह खाली पेट।  अभी इतना ही फिर आगे मिलते हैं मित्रों  नमस्कार 

कर्म

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नमस्कार मित्रों दोस्तों पिछले लेख में हमने बताया था कि कृष्ण के समय कई परम्परायें टूटी, कई नियम टूटे, और एक नये धर्म का उदय हुआ जो व्यक्ति को कर्मशील बनाता है। जो भगवान के अस्तित्व को स्वीकार करो या मत करो, पूजा पाठ करो या मत करो, धार्मिक रहो या अधार्मिक, सात्विक रहो राजसिक या तामसिक लेकिन कर्म और कर्म के फल में आसक्ति मत रखो। कर्म को देखो, देखने से आप drasta बन जाओगे, इस तरह आप कर्म और उसके परिणाम से बच सकते हो, छूट सकते हो। कर्म के साथ ही मन और शरीर भी छूट जाता हैं।  कर्म,और उनके परिणाम में आसक्ति के छूटते ही आप मुक्त हो, स्वतंत्र हो। बन्धन का कारण मन, शरीर और कर्म ही है। जब कर्म और उसके परिणाम में आसक्ति नही रहती तो प्रकृति भी कोई परिणाम नही देती, तो व्यक्ति पिछले कर्मो के परिणाम को भोगकर, प्रकृति के बन्धन से मुक्त हो जाता हैं। नये कर्म नही बनने पर और पिछले कर्मो के चुक जाने पर, आत्मसाक्षात्कार हो जाता हैं, और वह जीवन मरण के बंधन से हमेशा के लिए मुक्त हो जाता हैं। इसमें कृष्ण ने कही नही कहा कि पूजा पाठ करो या तपस्वी बनो, या धोत्ति बाँधो  जनेऊ चोटी तिलक लगाओ। इसीलिए कृष्ण ...

स्वार्थ

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मित्रों हमने पिछले लेख में विश्व कल्याण परिषद के अंतर्गत परमार्थ नाम से एक संक्षिप्त लेख दिया था। आज हम आपको अध्यात्म शक्ति अनुसंधान केंद्र से सम्बंधित एक लेख दे रहे हैं। इसमें जानेगें कि योग के सिद्धान्तों से, हम अपने आप को,अपने जीवन को कैसे बदलें, जिस तरह एक योगी को भारतीय संस्कृति मे पूर्ण शारिरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति बताया है, वह लक्ष्य केसे प्राप्त हो।  योग के अंतर्गत ही चेतना, परमात्मा व आत्मा का विषय भी आ जाता है। दोस्तों भारतीय संस्कृति में कई प्रकार के योग बतलाये हैं, लेकिन उनको हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं, एक ध्यानयोग और दूसरा ज्ञानयोग, यह दो प्रकार के योग ही भारतीय संस्कृति की मुख्य धरोहर है। ज्ञान योग का सबसे उत्तम, भारत में सबसे अधिक प्रचलित ग्रन्थ हैं गीता। विश्व को गीता का ज्ञान देने वाले श्री कृष्ण व उनका ज्ञान, भारत के कण कण में बसा है। उन्होंने अर्जुन को स्पष्ट कहा कि,  1 कर्म कर फल की इच्छा मत कर 2 कर्म का परिणाम निश्चित आना है। और उन्होंने यह भी कहा अर्जुन को, 3 अगर तुम सन्यासी बनने की सोच रहे हों तो कर्म तो सन्यासी का भी बनता है। अतः अपने...