कर्म
नमस्कार मित्रों
दोस्तों पिछले लेख में हमने बताया था कि कृष्ण के समय कई परम्परायें टूटी, कई नियम टूटे, और एक नये धर्म का उदय हुआ जो व्यक्ति को कर्मशील बनाता है। जो भगवान के अस्तित्व को स्वीकार करो या मत करो, पूजा पाठ करो या मत करो, धार्मिक रहो या अधार्मिक, सात्विक रहो राजसिक या तामसिक लेकिन कर्म और कर्म के फल में आसक्ति मत रखो। कर्म को देखो, देखने से आप drasta बन जाओगे, इस तरह आप कर्म और उसके परिणाम से बच सकते हो, छूट सकते हो। कर्म के साथ ही मन और शरीर भी छूट जाता हैं। कर्म,और उनके परिणाम में आसक्ति के छूटते ही आप मुक्त हो, स्वतंत्र हो। बन्धन का कारण मन, शरीर और कर्म ही है। जब कर्म और उसके परिणाम में आसक्ति नही रहती तो प्रकृति भी कोई परिणाम नही देती, तो व्यक्ति पिछले कर्मो के परिणाम को भोगकर, प्रकृति के बन्धन से मुक्त हो जाता हैं। नये कर्म नही बनने पर और पिछले कर्मो के चुक जाने पर, आत्मसाक्षात्कार हो जाता हैं, और वह जीवन मरण के बंधन से हमेशा के लिए मुक्त हो जाता हैं। इसमें कृष्ण ने कही नही कहा कि पूजा पाठ करो या तपस्वी बनो, या धोत्ति बाँधो जनेऊ चोटी तिलक लगाओ। इसीलिए कृष्ण के योग को ज्ञानयोग, बुद्धियोग भी कहते हैं, जिसको समझों, समझने मात्र ही तुम छूट जाओगे। छूटने के लिए कोई कर्म, क्रिया नही करनी, केवल समझ से ही छूट जाओगे, प्रकृति के बंधन से मुक्त हो जाओगे। यही कर्म योग हैं।
दोस्तों पिछले लेख में हमने बताया था कि कृष्ण के समय कई परम्परायें टूटी, कई नियम टूटे, और एक नये धर्म का उदय हुआ जो व्यक्ति को कर्मशील बनाता है। जो भगवान के अस्तित्व को स्वीकार करो या मत करो, पूजा पाठ करो या मत करो, धार्मिक रहो या अधार्मिक, सात्विक रहो राजसिक या तामसिक लेकिन कर्म और कर्म के फल में आसक्ति मत रखो। कर्म को देखो, देखने से आप drasta बन जाओगे, इस तरह आप कर्म और उसके परिणाम से बच सकते हो, छूट सकते हो। कर्म के साथ ही मन और शरीर भी छूट जाता हैं। कर्म,और उनके परिणाम में आसक्ति के छूटते ही आप मुक्त हो, स्वतंत्र हो। बन्धन का कारण मन, शरीर और कर्म ही है। जब कर्म और उसके परिणाम में आसक्ति नही रहती तो प्रकृति भी कोई परिणाम नही देती, तो व्यक्ति पिछले कर्मो के परिणाम को भोगकर, प्रकृति के बन्धन से मुक्त हो जाता हैं। नये कर्म नही बनने पर और पिछले कर्मो के चुक जाने पर, आत्मसाक्षात्कार हो जाता हैं, और वह जीवन मरण के बंधन से हमेशा के लिए मुक्त हो जाता हैं। इसमें कृष्ण ने कही नही कहा कि पूजा पाठ करो या तपस्वी बनो, या धोत्ति बाँधो जनेऊ चोटी तिलक लगाओ। इसीलिए कृष्ण के योग को ज्ञानयोग, बुद्धियोग भी कहते हैं, जिसको समझों, समझने मात्र ही तुम छूट जाओगे। छूटने के लिए कोई कर्म, क्रिया नही करनी, केवल समझ से ही छूट जाओगे, प्रकृति के बंधन से मुक्त हो जाओगे। यही कर्म योग हैं।
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